एमएसपी की गारंटी और गेहूं-धान की खेती क्‍यों है प्रकृति व किसानों के लिए नुकसानदेह, जानें क्‍या कहते हैं एक्‍सपर्ट

नई दिल्ली। तीनों नए कृषि कानून वापस लिए जा रहे हैं। एक वर्ग इसकी खुशी जता रहा है और एक वर्ग दुखी है। इस सबके बीच अभी भी आंदोलन जारी है और कृषि क्षेत्र की चुनौतियों गिनाई जा रही हैं। सवाल यह है कि चुनौतियों की चर्चा करने वाले सचमुच कृषि को लेकर कितने जागरूक और गंभीर हैं। चाहे वह न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की बात हो या फिर लंबे समय तक कृषि को लाभदायक बनाने और प्राकृतिक संतुलन की बात हो। एमएसपी और गेहूं-धान की खेती दोनों धीरे-धीरे खुद प्रकृति और किसानों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकते हैं, अगर बहुत सतर्कता से आगे न बढ़ा जाए।

पंजाब, हरियाणा व पश्चिम यूपी की माटी को गेहूं-चावल की खेती ने बनाया बांझ

धान व गेहूं देश की अर्थव्यवस्था के साथ किसानों की राह की बड़ी चुनौती बन गए हैं। इनकी खेती से लेकर खपत तक की पूरी श्रृंखला इतनी बोझिल हो गई है कि उसे आगे बनाए रखना कठिन हो गया है। हरित क्रांति के पुरोधा राज्यों पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की माटी को गेहूं-चावल की खेती ने बांझ बनाकर रख दिया है और इन राज्यों का भूजल रसातल में चला गया है।

कीटनाशक और फर्टिलाइजर के अंधाधुंध दोहन से यहां की आबोहवा दूषित हो चुकी है, जो यहां के लोगों की सेहत पर भारी पड़ने लगी है।दुनिया के दूसरे देश प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन करने वाली फसलों के साथ आबोहवा बिगाड़ने वाली खेती से दूरी बनाने लगे हैं। सीमित जल संसाधनों के चलते गन्ने और चावल की खेती को सीमित करने पर जोर दिया जा रहा है। दुनिया के चावल उत्पादक देशों ने खुद को चावल निर्यात से खुद को बाहर कर लिया है। भारत की आबादी से अधिक जनसंख्या वाले देश चीन ने धान और गन्ने की खेती से तौबा करना शुरू कर दिया है। पिछले कई वषरें में चीन ने भारत समेत कई और देशों से चावल आयात के सौदे किए हैं।

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