वाराणसी, अनुपम निशान्त।
शासन के यंत्रों पर रखो आंख कड़ी, छिपे अगर हों दोष, उन्हें खोलते चलो।
प्रजातंत्र का क्षीर प्रजा की वाणी है, जो कुछ हो बोलना, अभय बोलते चलो।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की यह पंक्तियां भारतीय जनमानस को प्रेरित करती हैं। राजनीति से विरत रहने के बजाय उस पर नजर रखने और सच कहने का बल भरती हैं। वस्तुत: वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रजातंत्र में प्रजा ने मताधिकार से प्रयोग से अपनी बात कही और नतीजा चौंकाने वाला रहा। जनता ने सरकार बदल दी और लोकतंत्र की ताकत का अहसास कराया। बदलाव की बयार कुछ ऐसी बही कि वर्ष 2012 की तुलना में 2017 में प्रदेश का समूचा राजनीतिक परिदृश्य ही बदल गया। जनादेश की बदौलत ही भाजपा ने पूर्वांचल में सपा की साइकिल की रफ्तार रोकी और सरकार की बागडोर योगी आदित्यनाथ ने संभाली, जबकि 2012 के चुनाव में कई जिलों में भाजपा की झोली खाली ही रह गई थी।
वर्ष 2012 के चुनाव में पूर्वांचल के दस जिलों की 61 सीटों में से 41 पर अकेल दम पर जीत हासिल करने वाली समाजवादी पार्टी पिछले चुनाव में महज 12 सीटों पर ही सिमट गई। कांग्रेस का तो पूरे पूर्वांचल में खाता तक न खुल सका। जबकि वर्ष 2012 में कांग्रेस ने वाराणसी, जौनपुर और मीरजापुर में तीन सीटें हासिल की थीं। कांग्रेस से गठबंधन के बावजूद सर्वाधिक नुकसान सपा को उठाना पड़ा। भाजपा ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) और अपना दल (एस) के साथ गठबंधन किया और इस गठबंधन को 61 में से 41 सीटें हासिल हुईं।
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