महामूर्ख सम्मेलन
काशी अपने रंग-तरंग की अलग ही नगरी है। अड़भंगी भोलेनाथ की तरह सतरंगी काशी में एक दिन ऐसा भी आता है जब एक महिला दूल्हा बनती है और एक पुरुष दुल्हन। भले ही यह विवाह कुछ पलों का होता है, लेकिन पिछले 53 सालों से साहित्यिक संस्था शनिवार गोष्ठी की ओर से हर साल यह परंपरा गंगा किनारे निभाई जाती है।राजेंद्र प्रसाद घाट पर हर साल एक अप्रैल को देश भर के मूर्खों का जमावड़ा होता है। ‘महामूर्ख सम्मेलन’ में जुटने वाले सचमुच के मूर्ख नहीं, बल्कि साहित्य, कला, संगीत व शिक्षा जगत के विद्वान होते हैं। आयोजन का श्रीगणेश शहर के प्रतिष्ठित जोड़े के विवाह से होता है। आदमी बकायदा साड़ी पहनकर सोलह शृंगार करके दुल्हन बनता है और औरत सेहरा सजाकर दूल्हा बनती है।काशी के अड़भंगी पुरोहितों द्वारा गड़बड़ मंत्रोच्चार से विवाह कराया जाता है और कुछ ही देर में छुट्टम-छुट्टा हो जाती है। किसी विलुप्त होते लोकनृत्य की प्रस्तुति नगाड़ों के थाप पर दिखाई देती है। देश के कोने-कोने से पधारे हास्य के धाकड़ रचनाकार आधी रात तक जो समां बांधते हैं कि नगरवासी मनहूसियत से कोसों दूर चले जाते हैं।
1/4/2022
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