वाराणसी
सनातन संस्कृति में दिन और ऋतु के अनुरूप व्रत पर्व मनाने की परंपरा है। इससे मानव जीवन और समाज में ऊर्जा का संचार होता है। व्रत-पर्व समाज को एक सूत्र में बांधने का काम करते हैं। सूर्य के राशि परिवर्तन से उत्पन्न मकर संक्रांति का पर्व इस बार 15 जनवरी को मनाया जाएगा।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडेय की मानें तो शास्त्रीय मान्यतानुसार –
पूर्वराशिं परित्यज्य उत्तरां याति भास्कर।
स राशि: संड्क्रामाख्या स्यान्मासस्त्वायनहायने।।
अर्थात सूर्य जब धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है तो इसे मकर संक्रांति कहते हैं। यह काल देवताओं की मध्यरात्रि मानी जाती है। इस दिन से देवता अपने दिन की ओर उन्मुख होने लगते हैं। धार्मिक शास्त्रीय ²ष्टि से इस काल को देखें तो इसमें स्नान दान का विशेष महत्व है। संक्रांति काल में गंगा सहित अन्य नदियों में स्नान करने और श्रद्धानुसार जरूरतमंद लोगों को अन्न, वस्त्र का दान करने से मनुष्य को अनंत गुणित फल प्राप्त होता है। गुड़ का दान विशेष फलदाई माना जाता है। पुण्य काल में स्नान-दान करने से मनुष्य कई जन्मों तक निरोगी रहता है। मकर संक्रांति के दिन भगवान शिव का घृत से अभिषेक करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। स्वर्ण और तिल से भरे पात्र का दान करने से अक्षय फल प्राप्त होता है।
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